
वन्दे भारत लाइव टीवी न्यूज़ डिस्ट्रिक्ट हेड चित्रसेन घृतलहरे, 08 जून 2025//पेंड्रावन//अंचल में धान की बुआई का समय आ चुका है। खेतों में हल चल चुके हैं, मानसून की बौछारें उम्मीद लेकर आई हैं, लेकिन वही उम्मीद अब चिंता और असहायता में बदल रही है। सरकारी धान उपार्जन केंद्रों में खाद की भयावह कमी से किसान बुरी तरह परेशान हैं। हालात ऐसे हैं कि किसान रोज़ सुबह खाद की आस में केंद्रों के चक्कर काटते हैं, मगर वहां से सिर्फ़ निराशा लेकर लौटते हैं। उपार्जन केंद्रों के प्रभारियों से बात करने पर सामने आता है कि खाद की डिमांड शासन को भेजी जा चुकी है, लेकिन अब तक कोई आपूर्ति नहीं हुई है। वे खुद भी जवाब देने की स्थिति में नहीं हैं। कह रहे हैं — “जैसे ही खाद आएगा, वितरण शुरू करेंगे।” लेकिन खेत खाद का इंतजार नहीं करते। समय निकलता जा रहा है और साथ ही निकल रही है किसानों की आशा। सबसे बड़ी विडंबना ये है कि जब सरकारी गोदामों में खाद नदारद है, तो वहीं निजी दुकानों में खाद का भरपूर भंडार मौजूद है – लेकिन दाम आसमान छू रहे हैं। जहाँ ₹266 में मिलने वाली यूरिया अब ₹450 तक पहुंच गई है, वहीं ₹1300 की डीएपी अब ₹1600 में बिक रही है। दुकानदार बेहिचक कालाबाज़ारी कर रहे हैं, और प्रशासन चुपचाप तमाशा देख रहा है।
किसानों के लिए समस्या सिर्फ़ दाम नहीं है, बल्कि यह भी है कि निजी दुकानों में ना तो कोई ऋण सुविधा है, ना ही कोई रियायत। सरकारी केंद्रों पर मिलने वाला आंसकालीन ऋण, जिससे किसान बिना नगद पैसे के खाद ले सकते थे, अब पूरी तरह ठप हो गया है। किसान आज यह कहने को मजबूर हैं कि – “अगर पैसा होता, तो महंगी खाद भी खरीद लेते, लेकिन हमारे पास तो विकल्प ही नहीं है।”
कई किसान बता रहे हैं कि खाद की अनुपलब्धता से वे समय पर बुआई नहीं कर पा रहे हैं, जिससे इस वर्ष की पूरी फसल ही खतरे में पड़ सकती है। उनका गुस्सा अब शासन के प्रति उबलने लगा है। उनका कहना है —
“ऐसी सरकार किस काम की जो खेतों को खाद न दे सके? वादे बहुत किए जाते हैं, योजनाओं के नाम पर बड़ी-बड़ी घोषणाएं होती हैं, लेकिन जब अन्नदाता को उसकी सबसे बुनियादी ज़रूरत – खाद – तक नहीं मिलती, तो ये सारी योजनाएं खोखली लगती हैं।”
यह स्थिति ना केवल कृषि को, बल्कि पूरे ग्रामीण जीवन और अर्थव्यवस्था को खतरे में डाल रही है। शासन की निष्क्रियता और व्यापारियों की मुनाफाखोरी के बीच किसान कुचले जा रहे हैं, और अगर समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो इसका परिणाम केवल खेतों में नहीं, बल्कि सड़कों पर भी दिखाई देगा।
किसानों ने चेतावनी दी है कि यदि जल्द ही खाद की आपूर्ति सुनिश्चित नहीं की गई और प्राइवेट दुकानों पर नियंत्रण नहीं लगाया गया, तो वे आंदोलन करने को मजबूर होंगे। गाँव से लेकर ब्लॉक तक विरोध की लहर उठ सकती है। आज सवाल सिर्फ खाद का नहीं है, बल्कि शासन की नीयत, प्रणाली की संवेदनशीलता, और अन्नदाता के सम्मान का है।
अगर अब भी शासन नहीं जागा, तो सिर्फ खेत ही नहीं, विश्वास भी सूख जाएगा।